एक लगन होने से, परमात्म प्राप्ति ।

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एक लगन होने से, परमात्म प्राप्ति ।

जो भाई-बहन तत्परता से लगे हैं । हे भगवान् ! हे भगवान् ! करते हुए नाम जप करें और लगन छूटनी नहीं चाहिए । हे नाथ ! हे नाथ ! भगवान् कैसे मिलें ? भगवान् कैसे मिलें ? यह मन में हरदम रहे । भोजन करो तो, जल पिए तो, सोवे तो, नींद आवे तो । दवाई की तरह ही सोना है, दवाई की तरह जागना है । ( समय का ध्यान रखें) हर एक भाई-बहन भगवान् कैसे मिले ? भगवान् कैसे मिले (ये भाव हो) । खाते – पीते भी लगन रहे भगवान् कैसे मिले ? सच्ची बात है । भगवान् हमारे हैं । हम भगवान् के हैं । हमारा साथ देने वाला कोई नहीं है । कोई शरीर साथ में रहा नहीं, यह शरीर भी साथ में रहेगा नहीं । मिलते हैं, बिछुड़ जाते हैं । ये भगवान् ऐसे हैं । आप याद रखो तो, याद नहीं रखो तो साथ छोड़ेंगे ही नहीं । किसी भी लोक में जाएंगे साथ छोड़ेंगे नहीं । हरदम साथ रहने वाला भगवान् है । शरीर और संसार यह साथ में रहने वाला नहीं है । साथ रह सकता ही नहीं । भगवान् कभी दूर होंगे ही नहीं, हो सकते ही नहीं, भगवान् अपना है और कोई अपना नहीं है । इस बात को आठ पहर भी भूले नहीं । प्राप्ति की लगन चाहिए । वह लगन हरदम रहना चाहिए । नींद आवे तो, जागे तो, खाते पीते भी याद आवे । शरीर को अच्छा समझते हैं । शरीर ठीक रहे । इसमें ही लगे रहते हैं । ये सब छूटने वाला है । एक परमात्मा के सिवाय कुछ साथ रहता ही नहीं । ज्ञान मार्ग में अपना स्वरूप है । भक्ति मार्ग में भगवान् का स्वरूप है – हरदम साथ है । उठते, बैठते, जागते, खाते, पीते भगवान् साथ में रहे । वह लगन छूटे नहीं । अनन्यचेता, सततम् और नित्यश: – ये तीन बात हैं । अन्य कोई नहीं है (अनन्यता) । सुबह से लेकर शाम तक (सततम्) और जब शुरू किया तब से लेकर मरे तब तक याद रखो (नित्यश: ) ईश्वर जन्म का साथी है । हे नाथ ! हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! हे मेरे स्वामी ! आठ पहर ही, आठ पहर ही । मेरा एक ही साथी और नहीं है । और सब मिलने – बिछुड़ने वाले, आते हैं, जाते हैं । भगवान् मरे तो भी साथ में, जीवे तो भी साथ में । वह छोड़ते ही नहीं । हे नाथ ! हे नाथ ! असली चीज है, असली भगवान् । मानव जीवन सार्थक हो जाएगा । नहीं तो निरर्थक हो जाएगा । एक ही लगन हो – हे नाथ ! हे नाथ ! खूब चेष्टा करो हरदम । रात और दिन हर समय । देखो ! एक मार्मिक बात बतावें अपने मन में कोई बात आवे और कैसी ही स्थिति हो, भगवान् के भूली नहीं होती । आश्चर्य आवे करोड़ों जीव हैं, किसी के मन में कुछ भी बात आई, सबसे पहले भगवान् जानते हैं ।

सेवा सबकी करनी है । पशु – पक्षी को भी सुख पहुंचाना है, मनुष्य का काम है । वृक्षों से, पशु से आप काम ले सकते हो । पर वह सेवा नहीं कर सकते । सेवा भाव है, भाव । प्रेमभाव भगवान् में हो जाए । अपनापन से प्रेम हो जाता है । सच्ची लगन हो, सच्ची । हे नाथ ! हे नाथ ! लगन छूटे नहीं । मिले हुए हैं, हरदम । हर क्रिया में, हर एक व्यक्ति में, हर एक वस्तु में, हर एक परिस्थिति में, हरेक समय में, हरेक काल में भगवान् हैं । ऐसी कोई अवस्था, घटना, परिस्थिति, देशकाल नहीं है, जिसमें भगवान् का अभाव हो ।
उमा राम सम हित जग माहीं ।
गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ।।
सब का भरण पोषण करते हैं । सबके हृदय की बात जानते हैं । आश्चर्य आता है, परमात्मा के समान कोई नहीं है । हे नाथ ! हे नाथ ! हे नाथ ! सबके लिए समान रीती से ।

*सब मम प्रिय सब मम* *उपजाए* । सब का भरण-पोषण करते हैं । आप याद करें तो, न करें तो (भगवान् भरण पोषण करते हैं ) और आप याद करें तो विशेष बात है । हमारे केवल प्रभु हैं । आपके साथ रहने वाले केवल भगवान् हैं । शरीर संसार साथ रहेगा नहीं । रहेगा नहीं । रहेगा नहीं । मीराबाई ने सच्ची बात कही – मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई । हे मेरे नाथ ! हे मेरे नाथ !
उमा राम सम हित जग माहीं।
छूटे नहीं बिल्कुल, एक क्षण भी तब काम होगा । वह इतना विलक्षण है कि वाणी से भी वर्णन नहीं कर सकते । पाप हमारे बनाए हुए हैं । यह नित्य रहने वाले नहीं हैं । नित्य रहने वाले एक परमात्मा ही हैं । मन में एक ही बात है – हे नाथ ! भूलूं नहीं । हे नाथ ! भूलूं नहीं । याद करने से केवल भगवान् मिलते हैं और संसार नहीं मिलता, धन नहीं मिलता, मान बड़ाई नहीं मिलती । भगवान् सब जगह हैं । वहीं तिलक कर दो, वहां ही दीपक दिखा दो, वहीं पुष्प अर्पण कर दो । वहीं माथा है, वहीं चरण हैं । प्रहलाद जी महाराज को पूछा तेरा भगवान् कहां है तो प्रह्लाद जी ने कहा – कहां नहीं हैं ? वह सब जगह हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!
।। जय सियाराम जी।।
।। ॐ नमः शिवाय।। यह रचना मेरी नहीं है मगर मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🙏🏻

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