सरकारी कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है मोदी सरकार,संजीव पाण्डेय

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सरकारी कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है मोदी सरकार,संजीव पाण्डेय

 

रिपोर्ट- रघुनाथ प्रसाद शास्त्री

लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद एवं उत्तर प्रदेश परिवार कल्याण परिषदीय सेवा संघ अध्यक्ष संजीव पांडे ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि सरकार सरकारी कर्मचारियों के साथ धोखा कर रही है। उन्होंने कहा कि एक बारगी बिना क्रमिक(हर छमाही) समीक्षा किए एक साथ तीन छमाही यानी डेढ़ वर्ष के लिए सरकारी कर्मचारियों के डी०ए०(महँगाई भत्ते) की निर्धारित तीन किस्तों को टालने के बजाए खत्म ही कर दिया जाना पूर्णतः औचित्यहीन है।जो कोरोना महामारी से निपटने में लगे समर्पित सरकारी कर्मचारियों को दंडित करने जैसा है और इन्हीं समर्पित कोरोना योद्धाओं(सरकारी कर्मचारियों) के सम्मान में बजवाई गयी ताली और थाली कार्यक्रम की निरर्थकता को प्रमाणित करता है।एक विरोधाभास यह भी है कि एक तरफ प्रधानमंत्री जी और सरकार प्राइवेट सेक्टर से कर्मचारियों का वेतन या परिलब्द्धियाँ न काटने का आह्वान कर रहे हैं और स्वंय उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं।एक और बात की नोटबंदी की अपार सफलता से जो कालेधन का जखीरा सरकार ने प्राप्त किया था।क्या वह खत्म हो गया? जो सरकारी कर्मचारियों के भत्ते काटने की नौबत आ गयी है।
श्री पांडे ने कहा कि आर्थिक विपदा के काल में डी०ए० (मँहगाई भत्ते) की घोषित वृद्धि को एक छमाही के लिए टाल देना एक अलग मसला है और बिना प्रति छमाही समीक्षा किए एक साथ तीन छमाही यानी डेढ़ वर्ष के लिए डी०ए० वृद्धि को खत्म ही कर देना एक अत्यंत असंवेदनशील कदम है और कोरोना संकट की आड़ में सरकार के षड्यंत्रकारी एजेंडे को अंजाम देना है।
विचारणीय है कि केन्द्र सरकार इस तरह से 37530 करोड़ रू० बचा लेगी और राज्यों ने भी यही कदम उठाया तो राज्य सरकारें भी इस मद में कुल 82566 करोड़ रूपये बचा लेंगी।यानी केन्द्र और राज्य सरकारों की सम्मिलित बचत अधिकतम 1 लाख 20 करोड़ रू० की होगी।
उन्होंने तर्क दिया कि यदि केन्द्र और राज्य सरकारें केवल #एन०पी०एस०(अंशदायी पेंशन योजना) को #पुरानी पेंशन योजना में बदल दें तो इस मद में पस्त शेयर बाजार में लगा कर्मचारियों और सरकार का 3 लाख 42 हजार करोड़ रू० सरकार का कोष हो जाएगा और इससे सरकार और कर्मचारी दोनों को ही फायदा होगा और ये नए कर्मचारी तो कई दशक बाद रिटायर होंगे और उन्हें पेंशन देने का दायित्व तब की बेहतर हालात में करना होगा।यही नहीं सरकारें प्रति माह 14% अंशदान देने के एक बड़े और निरंतर खर्चे से बच भी जाएँगी जो डी०ए० के मद में की गयी इस बचत के तीन गुना से भी ज्यादा होगा।सरकार द्वारा एन०पी०एस० के इस भारीभरकम कोष को ओ०पी०एस० में बदल कर इसका राष्ट्रहित में प्रयोग न करके डी०ए० की तीन किस्तों को ही खत्म कर दिया जाना सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
एक और पहलू विचारणीय है कि इस समय #क्रूडऑयल की कीमतें ऐतिहासिक गिरावट पर है और क्रूड ऑयल के भाव में 1 डॉलर की कमी से भारत को 29 हजार करोड़ रू० की बचत होती है।भारत के पास कुल तेल भंडारण का 35% अभी भी खाली है और विगत दो सप्ताह में क्रूड ऑयल के भाव में 15 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आ चुकी है यानी यदि भारत इस वक्त अपने बचे 35% तेल भंडारण क्षमता तक भंडारण कर ले तो वह 50 लाख करोड़ रू० से ज्यादा की बचत कर सकता है।इस इतने बड़े बचत का मार्ग शेष रहते सरकारी कर्मचारियों के डी०ए० पर प्रहार बेहद असंवेदनशील कदम है।
#सेंट्रलविस्टा सौन्दर्यीकरण प्रोजेक्ट(नई संसद) ,जो 20 हजार करोड़ रू० का है को स्थगित किए बिना सरकारी कर्मचारियों के डी०ए० पर प्रहार क्यों?
#बुलेटट्रेन परियोजना जिसके लिए इस बजट में 5 हजार करोड़ रू० केन्द्र सरकार ने आबंटित किए है और गुजरात व महाराष्ट्र सरकार को भी 5600 करोड़ रू० अपना अंशदान देना है , को स्थगित किए बिना सरकारी कर्मचारियों के डी०ए० पर प्रहार क्यों?
#पी०एम० राष्ट्रीय रिलीफ फंड़ में 3800 करोड़ रू० बिना खर्च के पड़े हैं, उसका इस्तेमाल किए बिना सरकारी कर्मचारियों के डी०ए० पर प्रहार क्यों?
दो वर्षों त क सरकारी #विज्ञापनों (कोरोना जागरूकता विज्ञापनों को छोड़कर) को रोक कर इस मद में 2500 करोड़ रू० बचाए जा सकते हैं।इसे बचाए बिना सरकारी कर्मचारियों के डी०ए० पर प्रहार क्यों?
विचारणीय है कि उपरोक्त तमाम आर्थिक विकल्पों के रहते हुए सरकारी कर्मचारियों जिसमें अर्धसैनिक बल, पुलिस, प्रशासन, डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ,सफाई कर्मी आदि भी आते हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना से आमने सामने की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनके डी०ए० वृद्धि को खत्म कर देना क्या इन सरकारी योद्धाओं का मनोबल गिराने जैसा नहीं है।जब इसी तरह इनका मनोबल गिराना था तो फिर इनके सम्मान में ताली और थाली बजवाने का ड्रामा क्यों करवाया गया?
कर्मचारी अपना जीवन दाव पर लगाये है रात दिन घर परिवार को छोड़कर व पूरा अपना जीवन का रिस्क लेकर सेवा कर रहा है।
होना तो यह चाहिए था कि डॉक्टर्स, स्टाफ नर्स, एल .टी. ,एल.ए., एक्स रे टेक्नीशियन, फार्मेसिस्ट,व पैर मेडिकल स्टाफ, पुलिस, फायर ब्रिगेड व सफाई कर्मचारी, कोषागार एवम बैंक सहित वैश्विक महामारी में सीधे जुड़ कर काम कर रहे कर्मच्चरियो को इंसेंटिव मिलना चाहिए था परन्तु इंसेंटिव मिलना तो दूर जो मिल रहा है वह भी छीना जा रहा है।
आप कुछ कर रहे मदद जरूरत मंद लोगों की कि नही।
नेता गिरी से आपको बहुत एलर्जी है तो कहाँ आप हिंदुस्तान में आ गए यहां तो नेता व अपराधी की गठजोड़ जग जाहिर है।
केवल कर्मचारी ही बेचारा सबसे कमजोर है।
एक दिन का वेतन बिना उससे पूछे जांचे काट लीजिए और इससे भी पेट न भरे तो मंहगाई भत्ता ही फ्रीज कर दीजिए।
अपने जीवन को दांव ओर लगाकर रिस्क लेकर आइयेआप भी जरा कुरोना से प्रभावित मरीजो की देखभाल व उनकी दवा आदि करके उनके सम्पर्क में आने की जरा हिम्मत तो दिखाइए।
बस खाली बयानबाजी करना है।
कर्मच्चरियो की जरा हालात पर नजर डालिए।
पर्य्याप्त संसाधनों के बिना भी रात दिन अपने जीवन को दावँ पर लगाकर बिना कुछ विशेष अपेक्षा के राष्ट्र हित में काम कर रहा है।
ध्यान रखिये उसकी अपने परिवार के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी व जवाबदेही हैं।
केवल कर्मचारियो का भत्ता फ्रीज करने से आर्थिक।संकट दूर हो जायेगा तो कर लीजिए दूर।
रिस्की हालातो में बिना पर्य्याप्त संसाधनों के काम भी लीजिए।और वेतन भत्ता भी मत दीजिये। कैसे अपने परिवार की बढ़ती महंगाई में गुजरा करेगा???
आपको क्या ??? आप तो बस ???
कर्मचारी भी समाज का एक हिस्सा है।
कोई दूसरे ग्रह से नही आया है।
उसके अपने हालातो पर भी जरा दया करके विचार करिये।
आंदोलनों से बड़ी एलर्जी है आपको।
इस एलर्जी का समय रहते इलाज कराइये क्योकि यह बहुत खतरनाक बीमारी है जिसका इलाज जरूरी है।
बिल्कुल सही लिखा है आपने महामंत्री जी !!!
यह सब नासमझी की पोस्टे है।
समस्या तब खड़ी होती है जब अपने ही अपनो के खिलाफ खड़े होते है और बिना दूर तक कुछ भी जाने समझे ही जो कुछ भी समझ मे आता है और बिना उसके दूरगामी परिणामो की चिंता किये सोशल मीडिया पर अपने को बहुत बड़ा आदर्श घोषित करते हुए पोस्ट कर देते है।
एक कहावत है न कि ” नादान की दोस्ती जी का जंजाल ”
कोई बात नही केवल धैर्य पूर्वक समय की प्रतीक्षा करिये।
गुड़ का बैना भेजा है शीघ्र ही बिना भूले सही समय पर गुलगुला वापसी का बैना जरूर से जरूर भेजा ही जायेगा।
जरा तोड़ा स्पस्ट करके बताइये न कि मैंने किस अपने के खिलाफ कभी खड़े होने का उपक्रम किया है।
मेरे पास आपकी जैसी बुद्धि कहा कि दूर तक सोच पाऊँ। चलो कोई बात नही आपके तो पास है ही है दूरगामी दृष्टि। कभी आवश्यकता होंगी तो आपसे ले लूंगा राय।
मीठा तो कम ही है लेकिन मीठा आपको जरूर नुकसान करेगा भी से ही उसका इलाज शुरू कर दीजिए ।आराम व सुविधस रहेंगी।
खुद तो आउटसोर्सिंग में काम कर रहे है और नियमित कर्मचारियो के अहित का समर्थन कर रहे है।
और यह नियमित लोग हमेशा ही आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए जो कुछ भी बन पड़ता है करने का प्रयास करता रहा है।
खैर कोई बात नही इस मुद्दे पर के। से कम अपने पराए का ठीक से ज्ञान तो हो रहा है कि कौन अपना है व कौन पराया है ???
आप भी सरकार के साथ मिल जाइए और पूर्णकालिक नियमित कर्मचारियो का जो और कुछ अहित करवा सकते हो करवा लीजिए। अभी वक्त है समय लौट कर नही आयेगा फिर आप पछतायेंगे कि यार एक समय था कुछ और मैं नुकसान कर सकता था।
आप बड़ी बड़ी बाते कर रहे आदर्शो की सिद्धान्तों की।
कभी उनको अपने जीवन मे भी लागू करके देखिए।
आप आपके इतना तो मैं बुद्धिमान कभी न बन पाऊंगा।
फिर भी बता दु कि मीठा आपको नुकसान करता होगा मुझे तो करता नही मैं तो बहुत मीठा खाता हूं।
हाँ अरे एक बात तय बता ही दूँ की आपकी हैसियत पूर्णकालिक कर्मच्चरियो के तीन तीन मंहगाई भत्ते की किश्तों को न तो कटवाने को ताकत है न लगवाने की।
खाली लॉक डाउन के समय के खेल है ।
इंज्वाय करिये।
फिर भी मेरी बात आज की तारीख व समय नोट कर लो की ज्यादा दिन तक तीन तीन मंहगाई भत्ते की किश्त रुक नही पाएंगी औऱ बहुत शीघ्र बहाल हो जाएंगी और आप की ह न कर पायेंगे।
यह मेरी बहुत बड़ी गलती है कि मैं आपको अब तक ठीक से पहचान नही पाया।
बहुत से लोग आपके विषय मे बताया करते थे लेकिन मैंने कभी विश्वास नही किया।
लेकिन अब मुझे अपनी गलती महसूस होती है कि वो लोग सही है मैं ही गलत था।
फिर भी घी के दिये जलाइये, बाजे बजवाये व मिठाई बतवाईये, खूब खुशी मनाइए।

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