जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के अवतरण दिवस पर खास रिपोर्ट

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जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के अवतरण दिवस पर खास रिपोर्ट

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने धर्म, संस्कृति और देश की सुरक्षा के लिए की चार मठों की स्थापना

2000 साल पहले केरल के कालड़ी नाम के गांव में हुआ था भगवान शंकराचार्य का जन्म

 

रिपोर्ट-धर्मेंद्र सिंह

सफीपुर उन्नाव

हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इस दिन शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और देश के चारो दिशाओ मे घूम घूम कर धर्म संसकृति का प्रचार प्रसार करने के साथ साथ चार मठों की स्थापना की जिन्हे चार धाम के नाम से जाना जाता है । इसके बाद 820 ई में इन्होंने हिमालय के केदारनाथ धाम मे समाधि ले ली।
कलमकार धर्मेन्द्र कुमार सिंह ने आदि शंकराचार्य के अवतरण दिवस पर उनके जीवन चरित्र पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुये कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ीगांव मे नम्बूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ था। आज इसी कुल के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल अर्थात पुजारी होते हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव के अन्शावतार आदि गुरु शंकराचार्य है ।
श्री सिंह ने बतया जी जब आदि शन्जारचार्य जन्मो परान्त तीन साल हुये थे तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद गुरु के आश्रम में इन्हें 8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हो गया। फिर ये भारत यात्रा पर निकले और इन्होंने *देश के 4 हिस्सों में 4 पीठों की स्थापना की*। कहा जाता है इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की।

 

4 वेदों से जुड़े 4 पीठो की स्थापना की।
जिस तरह ब्रह्मा के चार मुख हैं और उनके हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई है। यानी पूर्व के मुख से ऋग्वेद. दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है। इसी आधार पर शंकराचार्य ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की।
ये चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। *ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है। सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है। ये बद्रीनाथ में है। माना जाता है कि ये आखिरी मठ है और इसकी स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि ले ली थी*।
श्री सिंह ने कहा कि देश में सांस्कृतिक एकताज्योतिर्मठ केबद्रिकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना है कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पूजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो रूप से एकता के सूत्र में बंध सके।देश की रक्षा
आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के सन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करनी होती है। इन जगहों से कोई अधर्मी देश में न आ सके, इसका ध्यान भी रखा जाता है।पुरी, तीर्थ और आश्रम नाम के सन्यासियों को तीर्थों और प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती हैभारती और सरस्वती नाम के सन्यासियों का काम देश के इतिहास, आध्यात्म, धर्म ग्रंथों की रक्षा और देश में उच्च स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना है।
गिरि और पर्वत नाम के सन्यासियों को पहाड़, वहां के निवासी, औषधि और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया।सागर नाम के संन्यासियों को समुद्र की रक्षा के लिए तैनात किया गया।
सिद्ध हनुमान धाम आश्रम भिनकीपुर के संस्थापक सन्त स्वामी राम स्वरुप बृम्ह्चारी महाराज ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने चार वेदो के आधार पर चारो दिशाओ मे चार माठो अर्थात चार धामो की स्थापना करके भारतीय संसकृति सभ्यता धर्म अध्यात्म को प्रसारित कर स्थापित किया और भारतीयो को एक सूत्र मे पिरोने का काम किया है जिनकी परम्परा पर आज सभी सन्त समेत चारो आश्रम के लोग चल रहे है रंग रुप भेष भुशा बोली भाषा तो भिन्न हो सकती है किन्तु शिव अवतारी आदि शंकराचार्य के बताए धर्म मार्ग और भाव भेद नही है । प्रत्येक क्षेत्र मे शंकराचार्य जी ने जन कल्याण की भावना से धर्म आध्यात्म का चतुर्मुखी ज्ञान का प्रकाश फैलाया है । भगवान शंकराचार्य ने चार मठों के साथ चार शिष्य बनाये जिनमे प्रमुख रुप से पद्म पादाचारी टोटकाचारी हस्तामलका चारी सुरेश्वाचारी नामके चारो शिष्यो ने उनके बाद भारतीय संसकृति का प्रचार प्रसार कीया । जिसे आधार मानकर उनके बताए मार्ग पर सभी धर्मानुरागी चल रहे है ।
शिक्षक पत्रकार दिवाकर दिवेदी ने कहा कि आदि शंकराचार्य के बताए धर्म मार्ग पर सभी को चलना चाहिये उन्होने मानव कयाण और प्रभु प्राप्ति के साथ मोक्ष प्राप्ति के सहज गुर दिये है । आज का समाज पाश्चात्य सभ्यता की ओर अधिक उन्मुख है अपने सन्तो आदि गुरुओ के बताए मार्ग पर चलने से कतराते है ।
भिनकीपुर हनुमान धाम मे सन्त रामस्वरुप बृम्ह्चारी महाराज ने आश्रम पर सोसल डिस्टरेंस का पालन करते हुये भगवान शंकराचार्य का अवतरण दिवस मनाया इस मौके पर आनन्द अवस्थी जिला उपाध्यक्ष संजीव त्रिवेदी अमित त्रिपाठी रितेश मिश्रा रितिक गुप्ता अवधेश सिंह फौजी हरिपाल सिंह मौजूद थे ।
*प्रस्तुति कलमकार धर्मेन्द्र कुमार सिंह “धर्मशील”*