कष्टों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने  , मनुष्य के कर्मों को ही महत्ता दी ,व्यास विमल   बल्लभ

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  कष्टों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने      मनुष्य के कर्मों को ही महत्ता दी ,व्यास विमल           बल्लभ

 

रिपोर्ट-गिरीश त्रिपाठी स्वतन्त्र पत्रकार

उन्नाव

फतेहपुर चौरासी, कष्टों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने मनुष्य के कर्मों को ही महत्ता दी है। उनके अनुसार आपके कर्म ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोगों का उद्धार होना संभव नहीं है।
यह बात ग्राम समसा पुर कुरौली फूलवती देवी मंदिर सिद्ध पीठ में फूलमती देवी यज्ञ समिति के बैनर तले चल रही श्री शतचंडी महायज्ञ के दौरान हो रही श्रीमद्भागवत कथा व्याख्या में काशी से आए व्यास विमल बल्लभ ने भक्तों को बताई। उन्होंने कहा कि भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है। जिसमें बताया गया है कि एक बार एक बार देवर्षि नारद जी बैकुंठ धाम गए। वहां नारद जी ने श्रीहरि से कहा ‘‘ हे प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं प्राप्त हो रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है।’’ तब श्री विष्णु जी ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है देवर्षि जो भी हो रहा है सब नियति के अनुसार हो रहा है।’’ वही उचित है।तब नारद जी बोले, ‘‘मैंने स्वयं अपनी आंखो से देखा है प्रभु, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।’’ विष्णु जी ने कहा, “कोई ऐसी एक घटना का उल्लेख करो।”
नारद ने कहा अभी मैं एक जंगल से गुजर रहा था। वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने नहीं आ रहा था। तभी एक चोर वहाँ से गुजरा। गाय को फंसा हुआ देखकर उसने गाय को बचाया नहीं, बल्कि उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली।’’थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उसने कठिनाई से उस गाय की जान बचाई। लेकिन गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है?नारद जी की बात सुनने के बाद प्रभु बोले, जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं। वहीं, उस साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी। लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई। इसलिए वह गड्ढे में गिर गया। भगवान ने कहा कि इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। सत्कर्मों के प्रभाव से हर प्रकार के दुख, और संकटों से मनुष्य का उद्धार हो सकता है। इंसान को सत्कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है।विष्णु जी की यह बात सुनकर नारद जी को मानव जाति के उद्धार का मार्ग पता लग गया। उधर राजेश जी यज्ञाचार्य के निर्देशन में शतचंडी यज्ञ की आहुतियां और यज्ञ मंडप के परिक्रमा का कार्यक्रम बराबर चल रहा था। कमेटी के व्यवस्थापक गणेश शंकर शुक्ला, अनिल अग्निहोत्री ,राकेश अग्निहोत्री, अखिलेश अवस्थी, गोपाल सिंह , गणेश सिंह आदि ने सभी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से संचालित की।

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