महादेवी_वर्मा_से_विस्तृत_चर्चा

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📌 #महादेवी_वर्मा_से_विस्तृत_चर्चा
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महादेवी जी से मुलाकात कैसे होगी ? इस विषय मे मंथन करते हुए हम निराला जी के सुपुत्र राम कृष्ण जी से मार्गदर्शन न मिल पाने की वजह से मायूस थे । देर शाम प्रयाग महिला विद्यापीठ पहुंचे । इस महाविद्यालय में महादेवी जी प्राचार्य रही थीं । विद्यापीठ में एक व्यक्ति मिट्टी के चूल्हे में रोटी सेंक रहा था । मैंने उससे पूछा महादेवी जी का घर कहाँ है ? वह चूल्हे से रोटी निकालते हुए बोला, वो रिटायर हो गयी हैं । वह घर बताने के बजाय बताने लगा कभी-कभी आती हैं और ऊपर बैठकर पढ़ाती हैं । हम उसकी बातें सुनते रहे । उसकी बातों में मजा भी आ रहा था और उसकी बातों से देवी जी के विद्यापीठ के प्रति लगाव तथा अध्यापन में समर्पण की झलक मिल रही थी । उसने घर का रास्ता समझाया । उसके पास से हम ज्योंही मुड़े वो जोर से बोला मिल जाएं तो बड़ी बात है ।
जरूरी न होते हुए भी प्रसंगवश कहना ही पड़ेगा कि बसंत पंचमी 1976 को दैनिक जागरण कानपुर में हिन्दी सम्मेलन उन्नाव का आकर्षक परिशिष्ट प्रकाशित हुआ था । इस अंक में महादेवी जी से मेरा संवाद भी प्रकाशित हुआ था । एक स्थानीय पत्र ने भी इस संवाद को छापा था ।
👉🏿 विषय पर लौटते हुए याद आ रहा है कि जाड़ा बहुत था । सुबह तैयार होकर हम महादेवी जी के घर पर दस बजे के बाद पहुंचे होंगे । घर की लान में एक व्यक्ति खड़ा था । फाटक के अंदर जाने पर उसने परिचय पूंछा फिर तपाक से कह दिया डॉक्टर ने आराम की सलाह दी है । इन दिनों बीमार हैं । मैंने दृढ़ आग्रह के साथ कहा कि आप हमारी सूचना पहुंचा दें । वह अंदर चला गया । कुछ देर बाद एक अधेड़ महिला आई । देखने से मुझे लगा महादेवी जी ने जो भक्तिन रेखा चित्र लिखा है यह संभव है वह ही हों । उस महिला ने समझाने की शैली में कहा की देवी जी लेटी हुई हैं । हाँथ जोड़कर मिलने के लिए मना कर दिया है ।
✍🏽 अब मैं और महेश एक दूसरे को कुछ क्षण देखते रहे । कहा कि उन्नाव में उपहास के पात्र बन जाएंगे । हमने कोट की जेब से डायरी निकाली उसका एक पन्ना फाड़ा और महेश से कहा चिट्ठी लिखो । सम्बोधन में पूजनीया देवी जी लिखने के बाद विचार करके केवल तीन वाक्य लिखे ।
📌प्रथम निराला जी की भूमि से आये हैं ।
📌डॉ रश्मि दीक्षित का शोध प्रबंध साथ लाये हैं ।
📌दर्शन करके ही जाएंगे ।
डॉ रश्मि दीक्षित का सजिल्द टंकित शोध प्रबंध और उक्त पत्र उस महिला को हमने इस प्रार्थना के साथ दिया कि महादेवी जी के हाँथ में ही देकर आये । मौखिक भी कह दिया बगैर दर्शन किये वापस उन्नाव नही लौटेंगे । अधिकतम पांच मिनट बाद ही महादेवी जी आ गई । लान में सफेद पत्थर की एक मेज पड़ीं थी । उसके चारों ओर कुर्सियां थीं । महादेवी जी हाँथ जोड़ते हुए मेज के सामने एक कुर्सी पर बैठ गयी । दूसरी ओर मैं और महेश शुक्ल उनसे संकेत मिलते ही कुर्सियों पर बैठ गए । महेश ने पहले ही कह दिया था कि महादेवी जी से यदि भेंट हो पाती है तो विषय धीरेन्द्र तुम्हे ही प्रस्तुत करना होगा । उन्होंने हमलोगों से नाम और परिचय पूंछा । मैंने बताया कि महाप्राण निराला जी के जन्मदिन बसंत पंचमी के अवसर पर भारती परिषद उन्नाव जनपद मुख्यालय पर हिन्दी सम्मेलन आयोजित कर रहा है । एक ही वाक्य में रघुवीर सहाय, राजेन्द्र मिश्र , गंगा रत्न पाण्डेय, रामेश्वर शुक्ल अंचल सहित कई नाम बताए जिन्हें सम्मेलन को भिन्न-भिन्न सत्रों में सम्बोधन देना है । उनसे कहा कि परिषद की प्रार्थना है कि आप मुख्य अतिथि के रूप में उद्दघाटन उदबोधन देने का आमंत्रण स्वीकार कर लें ।
📌 मुझे लगा कि जैसे आग में घी डाल दिया हो । वो जोर से तो नही बोली लेकिन हमारे आमंत्रण को सिरे से खारिज कर दिया । राष्ट्रीय स्तर के उस विशिष्ट समारोह के औचित्य को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए । हम दोनो लोग मौन होकर उनकी रसमय रागमय प्रतिक्रिया सुनते रहे । देश मे आपातकाल था । आपातकाल को संदर्भ बनाते हुए कहा कि एक महिला ने बोलने तक पर रोक लगा दी है । हम देश की आज़ादी के लिए जेल गए थे । यह समय हिन्दी सम्मेलन करने का नही है । आपातकाल का सीधा विरोध होना चाहिए ।
अचानक धारा बदलते हुए कहा उन्नाव से निराला जी को आप क्यों जोड़ रहे हैं ? मैं उन्नाव गई थी । वह एक घर की चहार दीवारी में निर्वस्त्र थे । उस घर वालों ने उन्हें पागल की संज्ञा दे डाली थी । जिनकी नज़र में वो पागल थे, वे लोग ही अब जन्मदिन मनाने लगे । वह बोली मैं निराला जी के पास गई । अपना उत्तरीय दिया तो उन्होंने स्वतः लपेट लिया । मैं बाजार गई वहां से कपड़े लाई । उसके बाद उनको लेकर इलाहाबाद आ गई । यह घटना हमने पहले कभी सुनी तक नही थी । उन्होंने सांस्कृतिक प्रखर शब्दावली में परिभाषित किया कि निराला जी की मानसिक सतह उस दौर में लौकिक जगत से ऊपर थी । जिसे नासमझ लोग पागल कह रहे थे । जिस शब्दावली में वो प्रवाहमान थी उसे मनीषी भी शायद ही समझ पाते । हम लोग सिर्फ उनके तीव्र असंतोष को अंशतः पढ़ पा रहे थे । उन्नाव को लेकर उन्होंने कई बातें कही और दो टूक कह दिया कि मैं उन्नाव नही पहुंच सकूँगी ।
✍🏽 मेरा अनुमान है कि दो घंटा के लगभग वो बैठी रहीं । बोलते-बोलते उनके नयन भी बोल पड़े । निराला जी की याद करके इस क़दर आंसू गालों पर लुढ़के की उन्होंने अपने को संभाला और साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछे । खादी के श्वेत परिधान में विकलता का प्रतीक नज़र आ रही थी । हम दोनो लोग तो सुधबुध खोये से बस सामने बैठे उन्हें सुन रहे थे ।
उन्होंने फिर रुख बदला और निराला जी के जीवन के अछूते संस्मरण अविकल रूप से सुनाने प्रारम्भ किये । उन्होंने बताया कि निराला जी रक्षाबन्धन को घर आये । तांगे वाला बाहर खड़ा था । मुझसे कहा महादेवी दो आना ले आओ । मैंने दो आना दिया फिर बोले दो आना और ले आओ । मैंने उन्हें रक्षा बांधी । मिठाई खिलाई । उन्होंने मेरे दिए हुए दो आना मुझे दे दिए । बहन को रक्षा बांधने का सम्मान इन दो आना के रूप में मिल गया । वो देर तक रुके रहे । उठे और कहा महादेवी मैं जा रहा हूँ । मैं ज़िद करके तांगा लाई और तांगे वाले को पैसा यहां ही दे दिया ।
📌 एक दिन पैदल चलकर बहुत सुबह आ गए । कहा महादेवी मेरे साथ चलो , अपने मित्र से मिलाऊँगा । मैं कुछ देर बाद उनके साथ तांगा पर निकली दारागंज में गंगा की रेती में तांगा जा रहा था । ऐसा लग रहा था कि तांगा वाला जानता है कि उसे कहाँ तक जाना है ।
मैंने पूछा कहाँ हैं आपके मित्र ? उन्होंने कहा अभी मिलते हैं । गंगा के किनारे वो उतर गए । गंगा तट पर रहने वाले एक व्यक्ति ने चरण स्पर्श किया । एक कुर्सी लाया । कुर्सी का एक पाया टूटा हुआ था । उसके नीचे ईंटे लगाई गई । निराला जी ऐसे बैठे जैसे राज सिंघासन पर विराजमान हो । वो मुझे ये बताने के लिए लाए थे कि समाज के इस वर्ग की अनुभूतियों से ही कविता निःसृत होती है । अनेक संस्मरणों की उथल-पुथल तो मेरे मस्तिष्क में है लेकिन इस अतिसंक्षित आलेख में सहेज पाना भी आसान नही है । उन्होंने किसी अवसर के हवाले से बताया कि साहित्यकारों से मैंने पूछा, *हिन्दी का मसीहा कौन* है ? तो सभी का एक ही उत्तर था ।
*महाप्राण निराला* ।
📌 ऐसा लगा बोलते-बोलते वो थक गई हैं । हाँथ जोड़ते हुए कहा मैं उन्नाव नही पहुंच पाऊंगी ।
✍🏽 मैं आज अनुभव कर रहा हूँ कि माँ सरस्वती की कृपा ही रही होगी कि मेरे मन मे भी एक बात कहने की इच्छा जागृत हो गई । मैंने कहा एक बात मैं कहना चाहता हूँ । उन्होंने सकारात्मक सिर हिलाया । मैंने कहा मेरी पिछली पीढ़ी ने निराला जी को पहचानने में अक्षम्य गलती की । आप यह तो नही चाहेंगी कि अगली पीढ़ी भी महापुरुषों के मामले में ऐसी ही गलती करे । आप उन्नाव चलकर साहित्य के संदर्भ में कुछ भी मत बोलिये लेकिन पुरानी गलती का अहसास तो कराइये । प्रायश्चित के लिए चलकर भावी मार्ग निर्दिष्ट कीजिये । वो आधा मिनट तक मौन बनी रहीं । कहा तुम ठीक कह रहे हो । वहां मैं चलूंगी । उनकी आंखें पुनः छलक आईं । मैंने पूछा ट्रेन में रिजेर्वशन करा दिया जाए अथवा कार जो सुविधाजनक रहे बताइये । उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि मैंने चलने की सहमति दे दी है । अब जैसे कहोगे वैसे चलूंगी ।
📌 समारोह में वो अम्बेसडर कार से लाई गई । लेकिन लिवाकर लाने का सुअक्सर कार के स्वामी को मिला ।कमला मैदान उन्नाव के भव्य व्यवस्थित समारोह के मंच पर जब वो आई तब मैं भवन के हाल में प्रदर्शनी के उस मंडप को परिषद की ओर से संभाले हुए था । जिसमे उन्नाव के साहित्यकारों द्वारा महादेवी जी पर लिखा साहित्य सुसज्जित था ।
👉🏿 अचानक किसी ने आवाज़ दी, कहा महादेवी जी बुला रही हैं । मैं मंच पर चढ़ गया । मैंने अभिवादन किया । वो मुस्कुराई एक मिनट तक मैं मंच पर खड़ा रहा । एकाएक उन्होंने कहा कि इस युवक के कारण ही मैं यहां तक आ सकी हूँ । मुझसे कहा जाइये मेरे मंच से उतरने के बाद अपने बोलने का क्रम उन्होंने इलाहाबाद में मेरे साथ हुए संवाद के हवाले से शुरू किया । लोग समझते थे । ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा है । अतः थोड़ी देर बोलेंगी । देवी जी एक घंटा से अधिक धारा प्रवाह बोलीं ।
प्रदर्शनी का उदघाटन दीप प्रज्ज्वलित करके उन्होंने किया । साहित्य प्रदर्शनी के प्रथम मंडप पर मैं था । डॉ रश्मि दीक्षित का शोध प्रबंध उन्होंने देखा जो महादेवी जी के व्यक्तित्व पर है ।
स्मृति के तौर पर बसंत पंचमी 1976 का एक जीर्ण-शीर्ण चित्र मेरे पास है । जिसमे मैं महादेवी जी के आयुष्य में हूँ । साथ मे डी. एस. एन. पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज उन्नाव के संस्कृत के विभागाअध्यक्ष डॉ जे.पी. निगम , उन्नाव जिले के तत्कालीन ए. डी. एम. श्री हीरा लाल , युवा साहित्यिक व्यक्तित्व श्री आशुतोष बाजपेई हैं । अब मेरी सम्पति धरोहर और निधि ये टूटा-फूटा चित्र है । जो आधुनिक युग की मीरा की चरण रज की याद दिलाता रहता है । महादेवी जी को शत-शत नमन ।
🙏 *धीरेन्द्र कुमार शुक्ल* 🙏