इधर-उधर की बातों पर विश्वास तब तक न करें, जब तक आप स्वयं उन बातों की परीक्षा न कर लें, कि वे बातें सत्य भी हैं या नहीं?”

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इधर-उधर की बातों पर विश्वास तब तक न करें, जब तक आप स्वयं उन बातों की परीक्षा न कर लें, कि वे बातें सत्य भी हैं या नहीं?”
कुछ वर्ष पहले की बात है, “एक व्यक्ति ने किसी विद्वान की मृत्यु की सूचना अखबार में निकाल दी। जबकि वह विद्वान जीवित था।”
2 / 4 दिन में इधर उधर से उस विद्वान को पता चला, कि “मेरी मृत्यु की सूचना अखबार में निकल गई है।” उसे थोड़ा झटका लगा। उस विद्वान ने पता लगाया कि “मेरी मृत्यु की सूचना अखबार में किसने निकाली है?” खोज करने पर पता चल गया, कि अमुक व्यक्ति ने उसकी मृत्यु की सूचना अखबार में निकाली है।
2 / 4 दिन बाद वह विद्वान उस व्यक्ति के सामने जाकर खड़ा हो गया। “उस विद्वान व्यक्ति को प्रत्यक्ष सामने देखकर मृत्यु की सूचना निकालने वाले व्यक्ति के पांव के नीचे से ज़मीन निकल गई। वह उसे देख कर घबरा गया।” एक बार तो उसने सोचा कि “मेरे सामने कहीं भूत तो नहीं आ गया है?” परंतु भूत तो होते नहीं। वह विद्वान तो जीवित था। वही सामने खड़ा था।
उस सूचना निकालने वाले व्यक्ति ने, उस विद्वान व्यक्ति से पांव छूकर क्षमा मांगी और बहुत अफसोस किया, कि “मैंने बिना परीक्षा किए ही इधर उधर से सुनकर आपकी मृत्यु की सूचना अखबार में निकाल दी। मैं बहुत शर्मिंदा हूं, और आपसे क्षमा चाहता हूं, कृपया मुझे माफ कर दीजिए।” 🙏 उस विद्वान ने उसे माफ़ कर दिया।
परंतु इस घटना से हमें और आपको यह सीखने को मिलता है, कि “बिना परीक्षा किए इधर-उधर से सुनी सुनाई बातों पर यूं ही विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। पहले अच्छी तरह से उस घटना की सूचना को पक्का निश्चित अर्थात कन्फर्म कर लेना चाहिए, कि जो मैं सुन रहा हूं, यह सत्य भी है या नहीं?” “परीक्षा करने के बाद जब वह बात पक्की हो जाए, कन्फर्म हो जाए, तब ही कुछ कहना चाहिए। अन्यथा आप को भी उसकी तरह बाद में शर्मिंदा होना पड़ सकता है। तब आपको बहुत दुख और पश्चाताप होगा, कि “मैंने ऐसी मूर्खता क्यों की?”
इसी प्रकार से लोग एक दूसरे की निंदा चुगली करते रहते हैं। “इस संबंध में भी सदा सावधान रहें। इधर-उधर की बातों पर विश्वास तब तक न करें, जब तक आप स्वयं उन बातों की परीक्षा न कर लें, कि वे बातें सत्य भी हैं या नहीं?”
“बिना परीक्षण किए इधर-उधर की बातें सुनकर, यदि आपने किसी व्यक्ति के विषय में कोई झूठी बात फैला दी, तो बाद में आप को भी ऐसी ही परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जैसी कि ऊपर की घटना में बताई गई है।”
अतः सदा सावधान रहें। घटनाओं की स्वयं परीक्षा करके उनको कन्फर्म करके ही वह बात किसी और को आगे बताएं।
“अधिक अच्छा तो यह रहेगा, कि यथासंभव इधर-उधर की बातों में हस्तक्षेप न ही करें। ऐसी निंदा चुगली की बातों को सुनने से भी बचें। यदि कभी किसी परिस्थिति में ऐसी बातें सुननी पड़ भी जाएं, तो भी बिना परीक्षा किए ऐसी बातों का प्रचार न करें। इसी में बुद्धिमत्ता और आपका हित है।”यह रचना मेरी नहीं है मगर मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🙏🏻

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