आज राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के 7वें सम्मेलन का समापन हुआ ।

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आज राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के 7वें सम्मेलन का समापन हुआ

लखनऊ/ उत्तर प्रदेश

जन प्रतिनिधियों की भूमिका ‘ विषय पर 16 जनवरी 2020 को आरंभ हुए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के दो दिवसीय 7वें सम्मेलन का आज समापन हुआ। सम्मेलन में भारत केंद्र शाखा (भारत की संसद) और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र शाखाओं से 35 डेलिगेट्स ने भाग लिया। साथ ही, Australia और South East Asia सी पी ए रीजन के प्रतिनिधियो ने भी हिस्सा लिया। इसके अलावा, इन दो दिनों के सम्मेलन में, मंत्रिगण और उत्तर प्रदेश विधान सभा और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लगभग 270 विधायक उपस्थित रहे।
आज समापन सत्र में प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल, आनंदीबेन पटेल ने कहा कि विगत वर्षों के दौरान विधानमंडलों के कार्य के स्वरूप में बदलाव हुए हैं। उनके यह भी विचार थे कि आज के समय विधानमंडल न केवल विधि निर्माण का कार्य कर रहे हैं, अपितु आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में भी अग्रणी हैं। इसके परिणामस्वरूप, विधायी निकायों के सदस्यों के रूप में जन प्रतिनिधियों की भूमिका भी बदल गई हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभा के भीतर और बाहर जन प्रतिनिधियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाता है। अतः उनसे सामाजिक समस्याओं को समझने और विधानमंडलों तथा संसद के माध्यम से उनके समाधान में प्रमुख भूमिका निभाए जाने की अपेक्षा की जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि जन प्रतिनिधियों के रूप में यह आवश्यक है कि वे संसदीय परंपराओं, नियमों और प्रक्रियाओं का इस प्रकार प्रयोग करें जिससे विकासात्मक कार्य और जन कल्याण सुनिश्चित हो सके।

सम्मेलन में हुई परिचर्चाओं में सक्रिय एवं सार्थक रूप से भाग लेने के लिए प्रतिनिधियों को धन्यवाद देते हुए, लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा कि इस प्रकार विचारों और अनुभवों को साझा किए जाने से विधानमंडलों के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। श्री बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि विधायी संस्थाएं आम लोगों के सरोकारों, उनकी आशाओं और आकांक्षाओं को मुखरित किए जाने के विश्वसनीय मंच होते हैं, जिन्हें सभा में जन प्रतिनिधियों द्वारा प्रभावी ढंग से उठाया जाना चाहिए।

सम्मेलन के पहले पूर्ण सत्र अर्थात् ‘बजट प्रस्तावों की संवीक्षा के लिए जन प्रतिनिधियों की क्षमता बढ़ाना’ का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने कहा कि विधानमंडलों को कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक सजग प्रहरी की तरह कार्य करना चाहिए। इसके लिए, यह आवश्यक है कि जन प्रतिनिधियों को वित्तीय शब्दावली और बजटीय प्रक्रियाओं की बेहतर समझ हो। उन्होंने बजटीय प्रक्रिया की बारीकियों को समझने के लिए जनप्रतिनिधियों की क्षमता को बढ़ाने के लिए अनुभवी सांसदों और पदाधिकारियों की टीम को भेजने का प्रस्ताव रखा। ‘जन प्रतिनिधियों का ध्यान विधायी कार्यों की ओर बढ़ाना’ संबंधी दूसरे पूर्ण सत्र के बारे में, श्री बिरला ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध सभी प्रक्रियात्मक साधनों का प्रभावी रूप से इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य विधानमंडलों को सत्रों के दौरान लोक सभा द्वारा आरंभ किए गए पैटर्न के अनुसार विधायी कार्य संबंधी संक्षिप्त जानकारी सत्र आयोजित करने पर भी विचार करना चाहिए । श्री बिरला ने कहा कि प्रतिनिधिगण इस बात पर एकमत हैं कि विधानमंडलों को व्यवधानों के बिना सुचारू रूप से कार्य करना चाहिए । इसके लिए, नियम बनाए जाएं और विधानमंडलों में नियमों में एकरूपता लाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए । सम्मेलन में उभरी आम सहमति का जिक्र करते हुए श्री बिरला ने कहा कि संसद सहित सभी विधानमंडलों की डिबेट्स को एक प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास किया जायेगा। इसके अलावा इस बात पर भी आम सहमति थी की ऐसे सम्मेलन ग्राम पंचायत, नगरपालिका अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष , युवाओं और महिलाओं के स्तर पर भी आयोजित किये जाएं।

डेलीगेट्स को धन्यवाद् देते हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष, हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि बदलती परिस्थिति में विधायकों का काम बढ़ा है और साथ ही उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ी है। उन्होंने कहा अपने कार्य को सम्पादित करने के लिए विधायकों को को यह समझना आवश्यक है कि ज्ञान और अनुभव का इसमें अत्यंत महत्व है। लेकिन केवल संविधान और सदन की नियमावली पढ़कर सफल नहीं हुआ जा सकता। सफलता के लिए यह आवश्यक है कि विधायक सदन की कार्यवाही में नियमित रूप से भाग लें और गरिमामयी भाषा में अपने विचार सदन में रखें। उन्होंने जोर देकर कहा कि विधायक सदन को आदर और श्रद्धेय भाव से देखें।

उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति, श्री रमेश यादव ने भी समापन समारोह में धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया ।

 

आज, 17 जनवरी, 2020 को सम्मेलन में दूसरे पूर्ण सत्र के विषय अर्थात् “जनप्रतिनिधियों का ध्यान विधायी कार्यों की ओर बढ़ाना” पर चर्चा की गई । अल्पसंख्यक कार्य मंत्री, श्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि विधायकों का मुख्य कार्य कानून बनाना है और इसलिए उन्हें नीतिगत मुद्दे की पहचान करने के साथ ही उस मुद्दे का समाधान करने के लिए संभावित विधायी विकल्पों का चयन करने तथा संबंधित हितधारकों के साथ परामर्श करने में सक्षम होना चाहिए । कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना भी विधानमंडलों का एक महत्वपूर्ण कार्य है । इन विधायी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए यह आवश्यक है कि विधायकों को क्षेत्र विशेष से संबंधित शोध सहायता उपलब्ध हो । इस दिशा में, उन्होंने इस बात की प्रशंसा की कि विधायी कार्य को संसद में प्रस्तुत किए जाने से पहले उसके संबंध में संक्षिप्त जानकारी प्रदान करने की सुविधा आरंभ की गई है ।दूसरे पूर्ण सत्र के दौरान कई प्रतिनिधियों ने अपने विचार व्यक्त किए ।

स्मरण होगा कि लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला ने 16 जनवरी 2020 को इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था । मध्यप्रदेश के राज्यपाल, श्री लाल जी टंडन; उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री, श्री योगी आदित्यनाथ; उत्तर प्रदेश विधान सभा के माननीय अध्यक्ष, श्री हृदय नारायण दीक्षित; उत्तर प्रदेश विधान परिषद के माननीय सभापति, श्री रमेश यादव और उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष, श्री राम गोविंद चौधरी ने कल उद्घाटन समारोह के दौरान कल गण्यमाण्य विशिष्टजनों की इस सभा को संबोधित किया था ।

16 जनवरी 2020 को ही सम्मेलन के पहले पूर्ण सत्र के विषय अर्थात ‘बजट प्रस्तावों की संवीक्षा के लिए जन प्रतिनिधियों की क्षमता बढ़ाना’ पर चर्चा की गई थी । मुख्य भाषण देते हुए राज्य सभा के उप सभापति, श्री हरिवंश ने कहा कि सभी जन प्रतिनिधियों की साझी आकांक्षा है कि भारत आर्थिक महाशक्ति बने। इसके लिए यह ज़रूरी है कि विधिनिर्माताओं के पास बजट की संवीक्षा करने के लिए पर्याप्त कौशल और जानकारी हो । उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि विधिनिर्माताओं के लिए ज़रूरी है कि सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को समझने के लिए उन्हें तकनीकी शब्दावली और तकनीकों की जानकारी हो । इस संबंध में, उन्होंने वित्तीय नियमों, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों और बजट के अन्य तकनीकी पहलुओं के बारे में जानकारी देने में तकनीकी विशेषज्ञों की भूमिका के महत्व का उल्लेख भी किया। अनेक पीठासीन अधिकारियों ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए ।

16 जनवरी, 2020 को लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला ने ‘उत्तर प्रदेश विधान सभा: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ‘ नामक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया जिसमें 1922 से उत्तर प्रदेश विधान सभा के विकास की यात्रा दर्शाई गई थी । यह प्रदर्शनी उत्तर प्रदेश विधान भवन के फॉयर में लगाई गई थी ।

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की 180 शाखाएं हैं जो राष्ट्रमंडल के उन सदस्य देशों के विधानमंडलों में बनाई गई हैं जहां संसदीय लोकतंत्र है । राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की सभी शाखाओं का वर्गीकरण नौ भौगोलिक राष्ट्रमंडल क्षेत्रों में किया गया है ।

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र, जो पहले सीपीए एशिया क्षेत्र का भाग था, 7 सितम्बर, 2004 से स्वतंत्र क्षेत्र बन गया । सीपीए भारत क्षेत्र में भारतीय संघ शाखा(भारत की संसद) और 36 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों की शाखाएँ शामिल हैं । सीपीए भारत क्षेत्र के ऐसे सम्मेलन दो वर्षों में एक बार आयोजित किए जाते हैं और छठा सम्मेलन 2018 में पटना में आयोजित किया गया था।

रिपोर्ट-गिरीश त्रिपाठी स्वतंत्र पत्रकार

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