वेदव्यास जन्म की कथा सुन श्रोता हुए भावविभोर

Listen to this article

वेदव्यास जन्म की कथा सुन श्रोता हुए भावविभोर

उन्नाव जनपद के नई बस्ती आसीवन में सुरेंद्र रामकृष्ण के आवास पर चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में आज आरती श्यामाचरण जी ने व्यास जन्म की कथा सुनाते हुए श्रोताओं को बताया

महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की पूजा करते हैं।

कथा व्यास ने बताया प्राचीन काल में महर्षि पराशर भ्रमण के लिए निकले थे। भ्रमण करते वक्त उनकी नजर एक स्त्री पर पड़ी, जिसका नाम सत्यवती था। मछुआरे की पुत्री सत्यवती दिखने में बहुत सुंदर और आकर्षक थी। सत्यवती दिखने में तो बहुत आकर्षक थी लेकिन उसके शरीर से मछली की गंध आती थी, जिसकी वजह से सत्यवती को मतस्यगंधा भी कहा जाता था।
सत्यवती को देखकर ही पराशर ऋषि के मन विचलित और व्याकुल हो गया। ऋषि ने सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई। सत्यवती ने कहा यह तो अनैतिक होगा। मैं ऐसे किस तरह आपके साथ अनैतिक संबंध बना लूं। मैं इस तरह के संबंध से होने वाली संतान को जन्म नहीं दे सकती। लेकिन पराशर ऋषि नहीं मानें उन्होंने सत्यवती से निवदेन करने लगे।
ऐसे में महर्षि पराशर के सामने सत्यवती ने तीन शर्त रखी थीं। सत्यवती की पहली शर्त थी कि उन्हें संभोग क्रीडा करते वक्त कोई ना देखे। पारशर इस शर्त को स्वीकार करते हुए तुंरत कृत्रिम आवरण बना दिया। सत्यवती ने दूसरी शर्त रखी की वह उसकी कौमार्यता कभी भी भंग ना हो। ऐसे में ऋषि ने आश्वसान दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता भंग नहीं होगा, साथ में यह भी कहा कि होने वाली संतान महान ज्ञानी होगा।
सत्यवती ने पराशर ऋषि के सामने तीसरी शर्त रखी कि उसके शरीर में से आने वाली मछली की महक के स्थान पर फूलों की सुंगध में परिवर्तित हो जाए। ऋषि ने सत्यवती की इस शर्त को भी स्वीकार करके तथास्तु कह दिया और सत्यवती के शरीर से आने वाली गंध भी समाप्त हो गई।

समय आने पर सत्यवती को एक पुत्र हुआ, जो जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा। यही कृष्ण आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। महाभारत काल में मां के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों के साथ एक दासी के साथ भी नियोग किया। जिसके बाद जिसके बाद पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ।

वेदों के विस्तार के कारण ये वेदव्यास के नाम से जाने जाते हैं। वेद व्यास ने चारो वेदों के विस्तार के साथ-साथ 18 महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। महर्षि वेदव्यास महाभारत के रचयिता हैं, बल्कि वह उन घटनाओ के भी साक्षी रहे हैं जो घटित हुई हैं।
कथा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही श्रोताओं ने कथा वाचिका को खूब सराहा।

विज्ञापन बॉक्स