आज सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष का पूजन कर पति व सास-ससुर की लंबी आयु की कामना की

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शुक्रवार को सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष का पूजन कर पति व सास-ससुर की लंबी आयु की कामना की

आज पूरे देश में सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत को कर पति और सास ससुर की लंबी आयु की कामना की
यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। विवाहित महिलाएं इस व्रत को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद पाने के लिए रखती हैं। व्रत को रखने का पुण्यफल तभी प्राप्त होता है जब इस व्रत की कथा को सुना जाता है। यह पौराणिक कथा इस प्रकार है

, अश्वपति नाम का एक राजा था। राजा के घर कन्या के रूप में सावित्री का जन्म हुआ। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा ने अपने मंत्री के साथ सावित्री को अपना पति चुनने के लिए भेज दिया। सावित्री ने अपने मन के अनुकूल वर सत्यवान को चुन लिया। सत्यवान महाराज द्युमत्सेन का पुत्र था, जिनका राज्य हर लिया गया है, जो अंधे हो गए हैं और अपनी पत्नी सहित वनों में रहते थे।


वहीं जब सावित्री विवाह करके लौटीं तो नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी। साथ ही नारदमुनि ने यह भविष्यवाणी करते हुए कहा कि सत्यवान अल्पायु का है। उसकी जल्द ही मृत्यु हो जाएगी। नारदजी की बात सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा मुरझा गया। उन्होंने सावित्री से किसी अन्य को अपना पति चुनने की सलाह दी, परंतु सावित्री ने उत्तर दिया कि आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो अब वे चाहे अल्पायु हो या दीर्घायु, मैं किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नहीं दे सकती।

कुछ समय के बाद सावित्री के पति की उदर पीड़ा के चलते मृत्यु हो जाती है जिसके बाद सावित्री अपने पति को एक बरगद के पेड़ के नीचे लेकर बैठ जाती है बिना अन्न जल किए कई दिन तक तपस्या करती रहती हैं और वह अंत में यमराज से अपने पति को वापस मांग लेती हैं यमराज को सावित्री के तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्रवती होने का वरदान देना पड़ता है उसके बाद यमराज उनके पति को लेकर चल देते हैं सावित्री यमराज से कहती हैं आपने वरदान झूठा दिया है। क्योंकि मेरे पति को तो आप ले जा रहे हैं मैं पुत्रवती कैसे हो सकती हूँ इस पर सावित्री के पति को वापस जीवन दान देना पड़ता है ।उसी समय सावित्री ने एक बर और मांग लिया था बरगद वृक्ष की जो सुहागिन महिला आज के दिन पूजन करे वह सौभाग्यवती रहे तभी से आज तक यह पूजन किया जाता है।

          रिपोर्ट संपादक रघुनाथ प्रसाद शास्त्री

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