सकट लघुकथा मां कहती है।

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#सकट लघुकथा मां कहती है।

आज संकष्टी चतुर्थी है। माघ मास की इस तिथि को माताएं गणेश जी की पूजा उपासना करती हैं। व्रत रहती हैं। उद्देश्य जैसा समझ पा रहा हूं संतानों को सदैव संकट मुक्त रखने अथवा संकट आने पर उबारने का अनुष्ठान है। सनातन धर्म में श्री गणेश जी को विघ्न हरण करने वाले देवता की मान्यता है। मां स्वतः व्रत रहकर प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की आराधना संतानों के मंगल विधान हेतु करती हैं । मैं 46 साल से अधिक पहले अपने बचपन को याद करता हूं । इस तिथि को अनुष्ठान के समय कही जाने वाली कथाओं में एक कथा कई संदेश और आत्म संतोष देती है। संकष्टी चतुर्थी के अनुष्ठान में अनिवार्य रुप से तिल और गुड़ का महत्व है ।मां कहा करती है। एक गरीब परिवार था। ग्रह स्वामी मजदूरी करके घर चलाता था।

अनिवार्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पाती थी। संकष्टी चतुर्थी को केवल एक दिन बचा था । गुड़ और तिल खरीदने भर को पैसे नहीं थे । मां छटपटा रही थी कि बच्चों के जीवन में संकट न आ जाए। थोड़ी मात्रा में ही गुड़ और तिल होते तो संकट हर्ता की पूजा विधि पूर्वक संतानों के लिए हो जाती ।पत्नी की व्यथा से पति भी बेचैन था। बच्चों के लिए साल भर में एक बार पूजा ।आज कहीं दिहाड़ी पर काम तक नहीं मिला । उसने पत्नी से शाम को कहा वह गुड़ और तिल उधार ले आएगा ।मजदूरी कर के भुगतान कर देगा। कई जगह भटका । हाथ फैलाया । गिड़गिड़ाया ।उसे उधार तक कहीं नहीं मिल सका ।

उधार देने वालों ने केवल इसलिए बहाना बनाकर टाल दिया कि बेहद गरीब है । पता नहीं कब वापस कर पाएगा ! अब रात हो रही थी । वह घर नहीं लौटा। सोच रहा था तिल और गुड़ न होने पर विधिपूर्वक पूजा न हो पाएगी । कहीं बच्चों का अनिष्ट न हो जाए। पत्नी व्रत तो रहेगी। वैसे ही उसे कहां रोज भरपेट खाना नसीब होता है। बच्चों तक को आधा पेट खिलाकर कई कई दिन फांके करना पड़ता है। उसकी जिंदगी में तो आए दिन उपवास है। बच्चों का मंगल विधान सोचते-सोचते टूट रहा था ।कहीं इस चिंता में पत्नी का प्राणांत न हो जाए। चिंता में निमग्न छठपटाते हुए उसके मन में बच्चों के लिए तैरने का अजीब भाव आ गया ।आज की रात चोरी करके गुड़ और तिल लाएगा । बड़े लोगों के घरों में उत्तर पाना आसान नहीं है । क्रोध में बड़बड़ाने लगा। दिन में लूटते हैं । रात में ताकते हैं । सोचते सोचते आधी रात के बाद छप्पर की थूनी के सहारे वह एक घर की छत पर चढ़ गया । वह लटककर आंगन में कूद गया । धीरे से बड़ी कोठरी में घुसा। वहां एक महिला सो रही थी । साधारण किसान का घर था कोठरी में मिट्टी के बर्तनों में तिल गुड़ आदि देखकर खुश हो गया । उसे तो बच्चों की खातिर केवल एक- एक मुट्ठी चोरी करना था ।उसके पास चोरी करके निकल जाने का समय था ।महिला गहरी निद्रा में थी। अचानक उसके दिल में तूफान उठा । चोरी करके पूजा ! बच्चों का विधान ! वह तिल और गुड़ कोठरी की देहरी पर जलते दीए की रोशनी में देखता रहा ।अब उसका धैर्य टूट गया। चिल्लाने लगा । गुड़ छूए तो पाप , तिल छुऐ तो पाप । उसे गुड़ और तिल छूने में ही पाप का भय लगने लगा। महिला की नींद आवाज सुनकर टूट गई। महिला चिल्लाई ,चोर चोर ! वह भागा नहीं? स्तब्ध खड़ा हो गया । बगल के कमरे से उस महिला का लड़का आवाज सुनकर आ गया । चोर पकड़ा गया ।महिला ने कडे श्वर में लड़के से कहा मारना नहीं ! महिला ने चोर से पूछा , पाप- पाप क्या बक रहे थे ?

चोर ने कहा मुझे जेल भिजवा दो। मैं चोर हूं । महिला ने कहा यह कैसा चोर है ! पाप -पाप बकता है। जेल भेजने को कह रहा है। ऐसा कोई चोर तो नहीं करता । महिला ने जोर देकर कहा माजरा क्या है ।वह पूरी बात उगल बैठा ।महिला ने कहा तुम धन्नासेठों के यहां उधार मांगने गए उनके पास दिल नहीं होता। वह गरीब को नहीं पहचानते । किसी मामूली किसान मजदूर के घर जाते तो पूजा भरकी सामग्री तो मिल ही जाती। वह उधार भी नहीं होती। महिला ने कहा मैं धनी नहीं हूं । मेरा दिल धनी है। सभी औरतें पूजा करते वक्त यही मांगती हैं कि भगवान सब की संतानों , पति की रक्षा करना । सभी में तो हम भी आ जाते हैं । अपने लड़के से कहा घर में तिल गुड़ के साथ ही जो भी सामान है आधा उसे दे दो । महिला ने आग जलाई । उसने कहा ठंड लग गई होगी । आग ताप लो। गुड खिलाया। गर्म करके पानी पिलाया। इतनी ही देर में लड़के ने सामान पोटलियों में बांधकर एक बोरी में भर् दी । महिला ने घर का दरवाजा खोला ।उसे विदा किया । चलते समय चोर ने महिला के चरणों में मत्था टेक दिया । महिला ने चोर को डांटते हुए कहा कि बहु से चोरी की कोशिश की घटना मत कहना । बस इतना कहना! एक मां मिली थी। उसने पूजा के लिए जबरदस्ती इतना सामान लाद दिया। और सुनो जब कभी जरूरत हो आ जाना ।कभी धनी आदमी के सामने हाथ मत फैलाना। गरीब ही गरीब की मदद करता है ।गरीब नवाज पर यकीन रखो।

रिपोर्ट जमीर खान

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